मालवी जाजम पे आज मालवी में लिखी कविता पेश हे.रिश्ता की गंध अपणी बोली ज्यादा मीठी वई जाए हे.
म्हारो यो भी प्रयास हे कि इण चिट्ठा पे गीत,कविता,गजल,हाईकू,दोहा,मुक्तक सबका सब नमूदार वे.म्हारो यो भी केणो हे कि बोली को मानकीकरण मुश्किल काम हे. बोली को आँचल खूब बडो़ हे ने वीमे जतरी बी दीगर बोली-भाषा आवे ...बोली के बरकत वदे(बढे़)हे.तो आज आप बांचो म्हारी चार लाईन की चार कविता इणमें रिस्ता का नरा (बहुत से) रंग आपके मिलेगा.
माँ
आज भी थपके हे म्हारी नींदा ने थारी लोरी
म्हने याद हे ममता की थारी झीणी झोरी
फाटा पल्ला में ढाँकी ने अपणी भूख तरस
माँ कस्तर उछेरया वेगा थें चाँद-सूरज
टीप:
झीणी:पतली
कस्तर:किस तरह
उछेरया:बडे़ किये होंगे
ममता:
म्हारा हिरदां में लाग्यो दूध थारो सिंदूरी
पेली बरखा की जाणे वास वसी कस्तूरी
तू तो देतीज रिजे माँ म्हारी जामण-गंगा
म्हारा माथा पे थारी ममता को ठंडो छांटो
टीप:
वास:गंध
वसी:वैसी
देतीज:देते ही रहना
दादी
सुमरणी हाथ में,आँख्यां में भरया सोरमघट
चुगाती चरकला दादी दया की भण्डारण
अबोली बावडी़ उंडी,वरद की पोटली जूनी
खुणा में सादडी़ सुखी पडी हे आपणीं दादी
टीप:
सुमरणी:राम नाम की माला
चुगाती चरकला:चिड़ियों को दाना खिलाते
उंडी:गहरी
खुणा:कोने में
सादड़ी:चटाई
हीरा-मोती
घेर गुम्मेर कसी छाँव हे अपणा घर की
पूजा हे देवता हे या बड़ा मंदर की
अणमोल्या रतन झडे़ कसा ई दादी का
दूधो न्हावो पूतो फ़लो म्हारा वाला
टीप:
घेर-गुम्मेर:गहरा-घना
Friday, 22 June 2007
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