Monday 11 June 2007

भाटो फ़ेकीं ने माथो मांड्यो..

मालवी का यशस्वी हास्य कवि श्री टीकमचंदजी भावसार बा अपणीं रंगत का बेजोड़ कवि था.घर -आंगण का केवाड़ा वणाकी कविता में दूध में सकर जेसा घुली जाता था.मालवी जाजम में या बा की पेली चिट्ठी हे....खूब दांत काड़ो आप सब.आगे बा की नरी(अनेक) रचना याद करांगा.

कविता को सीर्सक हे..
भाटो फ़ेकी ने माथो मांड्यो...

लकड़ी का पिंजरा में चिड़ियां बिठई
चोराय पे जोतिसी ने दुकान लगई
भीड़ भाड़ देखी ने एक डोकरी रूकी
लिफ़ाफ़ो उठायो तो चिट्ठी दिखी

साठ बरस की डोकरी ने बिगर भणीं
बंचावे भी कीसे भीड़ भी घणीं
अतरा में एक छोरो बोल्यो ला मां... हूं वांची दूंगा
जेसो लिख्यो वेगा वेसो कूंगा


लिख्यो थो...
प्रश्न पूछ्ने वाले तुम्हारी अल्हड़ता और सुंदरता पे
आदमी मगन हो जाएगा
और आते महीने तुम्हारा लगन हो जाएगा.

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