Thursday 5 July 2007

मालवी के विस्तार के लिये

मालवी बोली सरल एवं कर्णप्रिय तो है ही, इसकी मिठास भी लाजवाब है। मालवा में शुरू से मालवी ही बोली जाती है। परंतु जैसे-जैसे अँगरेज़ी घरों में घुसपैठ करती जा रही है, वैसे-वैसे नई पीढ़ी इसे पिछड़ेपन का प्रतीक मानने लगी है। नईदुनिया ने मालवी को (थोड़ी-घणी) स्थान देकर सराहनीय कदम तो उठाया ही है, साथ ही अख़बार को लोकप्रियता भी मिली है। थोड़ी-घणी के बिना शनिवार के पृष्ठ अधूरे एवं बेमज़ा लगने लगते हैं। ऐसे ही आकाशवाणी इन्दौर ने भी वर्षों से मालवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर इसके प्रचार-प्रसार में वृद्धि ही की है। नंदाजी-भेराजी के माध्यम से चर्चित कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय रहे हैं। आज भी कृषि, श्रमिक जगत कार्यक्रम एवं ग्रामलक्ष्मी कार्यक्रमों से इसे अच्छा स्थान मिल रहा है। समय-समय पर मालवी में काव्यपाठ आदि ने मालवी के प्रति आत्मीयता ही बढ़ाई है। अगर ऐसे कार्यक्रमों की वृद्धि होती रही तो नई प्रतिभाओं को उभरने का मौका तो मिलेगा ही, नई पीढ़ी में भी इसका रुझान बढ़ेगा। इसके विस्तार एवं प्रवाह में कुछ सुझाव और भी प्रभावशाली हो सकते हैं। साहित्य संस्थाओं एवं अन्य सृजनात्मक संस्थाओं द्वारा वर्ष में एक-दो बार मालवी रचनाओं की पुस्तक प्रकाशित की जा सकती है जिससे युवा पाठक एवं प्रतिभाओं में इसके प्रति फिर लगाव पैदा हो सके। नए एवं वरिष्ठ रचनाकारों के दो वर्ग बनाकर पुस्तक प्रकाशित हो सकती है तथा उनकी अच्छी रचनाओं को पुरस्कृत कर मालवी साहित्य की सेवा की जा सकती है। ज़िला एवं नगरीय स्तर पर वर्ष में एक-दो कवि सम्मेलन, जो पूर्णतः मालवी में ही हो, आयोजित किए जा सकते हैं ताकि जन-जन में मालवी बोली की सौंधी-सौंधी ख़ुशबू फैल सके। अन्य बोलियों की तरह इसमें भी समाचार पत्र निकाले जा सकते हैं।
-विभा जैन "विरहन'
८५, त्रिमूर्ति नगर, धार
नईदुनिया २६ जून २००७ में प्रकाशित

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