Wednesday 20 June 2007

मालवी लोक-नाट्य....माच..गणपति गजल

मालवी जाजम पे आज पधारिया हे मालवी माच का मान...दादा सिध्देश्वरजी सेन.भोला,सरल ओर प्रतिभा का धनी सेनजी नया जमाना का माच का पुरोधा.गाँव-गाँव, गली-गली जईके सेनजी ने मालवी माच मो मान बढायो.जिन्दगी भर अभाव में रिया पर माच को दामन नीं छोड्यो.आकाशवाणी,सूचना विभाग ने (और)पंचायत का तेडा़ (निमंत्रण) पे सेन जी आखा(पूरे) मालवा,निमाड़,राजस्थान,गुजरात में घूम्या और माच को रंग जमायो.माच बडी़ लाजवाब विधा हे.ईंके आप संगीत और नाटक को सामेलो (मेल) कई सको हो.ढो़ल और हारमोनियम पे बारता ( कहाने) केता-केता एक रूपक साकार हुई जाए.कला का पेला देव गणपति जी म्हाराज गजल गई के माच की सुरूआत वे हे.सिध्देश्वर जी सेन उज्जैन में रेता था. जद तक वी रिया ..माच को काम और नाम खूब बढ़यो.सेनजी ने माच की सेवा वेसे ज की जस तर हबीब तनवीर साब ये छत्तीसगढ़ का नाचा की की हे.सिध्देश्वर जी के संगीत नाटक अकादमी को मोटो (प्रतिष्ठित)मान बी (भी) मिल्यो.लोग के कि ग़ज़ल उर्दू में ज (ही) लिखी जाए..पण आपके अचरज वेगा की माच में बी गजल (मालवी में गजल लिखनो अच्छो लगे हे..ईंका से ग़ज़ल नीं लिखी रियो हूं).माच का बारा में आपके आगे बी ओर जानकारी दांगा (देंगे) . आपके या बतई के भोत खुसी वई री हे कि दादा सेनजी का बेटा प्रेमकुमार सेन भी माच ओर मालवी लोक संगीत की सेवा में लग्या हे..उज्जैन में रे हे (रहते हैं)प्रेम भई को कानगुवालिया गीत के खूब पंसद कियो जाए हे..उमें लिख्या हुआ दोहा में नरी (बहुत सी) गम्मत ओर ठिठोली वे हे ओर सबक़ बी .ढोलक ओर खड़्ताल बजात कानगुवालिया
ढांढा-ढोर( मवेशी) की चरवई का वास्ते राजस्थान से मालवा में आवे ने के(कहते हैं)...

आलखी की पालकी...जय कन्हैया लाल की
गोवर्धन गोपाल की ..श्री नन्द्लाल की
धीरे आन दे री जरा धीरे आन दे
धीरे आन दे री जरा धीरे आन दे

पन्नालाल जी पापड़ बेले
धनालाल जी धनियो
बद्रीलाल जी बाटो (मविशियों का आहार) बेचे
घ्रर में पड्ग्यो घाटो

बजार(बाज़ार) का माय(बीच)म्हारो छोरो अडी़ गयो
जलेबी देखी के यो तो आडो़ पडी़ गयो
कानगुवालिया की खासियत या हे कि आप सम-सामयिक प्रसंग पे बी दोहा कई सको हे ..एक उदाहरण देखो..

राष्ट्रपति का पद पे देखो परमिला जीजी आई
सोनियाजी का गीत पे केसी बंसी हे बजाई

ईन कुर्सी पे आज तलक तो आदमी हे बेठ्या
पेली बार बिराजेगा ईण पर देस की लुगाई

तो जींकी अपण हिन्दी में स्फ़ूर्त विचार कां हां वा बात कानगुवालिया में रेती थी.

तो या तो थी कानगुवालिया की बात..आपके यो बी बतई दां कि सेनजी की बेटी कृष्णा वर्मा देस की जाना-मानी कलाकार हे और मालवा का मांडणा बणावा में कृष्णा जी एक म्होटो नाम हे.उनके बी नरा(बहुत से) इनाम मिल्या हे.
अपण बात सुरू करी थी दादा सिध्देश्वर जी सेन से. तो उनके आज मालवी जाजम की श्रध्दांजली देता हुआ अपण मालवी माच मे गणपति वंदना की एक गजल बांची लां हां.

गजानन्द गणराज आज, म्हारी अरज सुणी ने आजो
रिध्दि-सिध्दि दोई पटराणी, के सांते(साथ)तम लाजो

मूसक ऊपर करो सवारी,दरसन बेग(जल्दी) दिखाओ
कंचन थाल धरां मुख आगे,मोदक भोग लगाजो

साय करो मंडली का ऊपर,बिगड़ी बात बणाजो
बीगन(विघ्न)हरो आनन्द करो,हिरदां(ह्रदय)में आय बिराजो


पेलां(पहले) पूजा करां आपकी,अइने(आकर) रंग जमाओ
सिध्देश्वर हे सरन-चरन में गणपति लाज बचाओ.

देख्यो आपने कित्तो सरल खयाल हे आदिदेव गणपति के मनावा को.अब तो दादा सिध्देश्वर जी रामजी का यां जई बस्या हे
पण मालवी माच की बिछात पे उनको नाम आज बी सरदा(श्रध्दा) का साते लियो जई रियो हे.मालवी जाजम पे आज माच का रंग की सुरूआत हे ..गजानन जी पधारी गया हे..देखो आगे आगे कई वे हे...तो फ़ेरे मिलां..राम..राम.

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