चरर मरर ,चरर मरर,चरखो चाले....दादी थारो चरखो चाले......अणी गीत से आखा देस मे म्हने पेचाण मिली.घर-आंगण का मीठा रिस्ता को गीत हे यो.अपणा घर-घर में इ रिस्ता त्याग,संघर्ष ओर प्रेम की पावन डोर वे हे.ईंमे भी घट्टी की चरर - मरर हे और हे परिवार की मंगल कामना का कल्याणी सुर. तीन केन्दीय पात्र हे ..दादी,भाभी,मां.
आओ बांचो...
चरर मरर , चरर मरर, चरखो चाले
दादी थारो चरखो चाले..
खेत में वायो ऊजरो,ऊजरो कपास रे भई
हांक्यो जोत्यो मोखरो , मोखरो कपास रे भई
आछो आछो कातल्यो दादी ये कपास रे भई
दादा थारी खादी को अंगरखो सुवाय रे भई
चरर मरर , चरर मरर चरखो चाले
दादी थारो चरखो चाले.
कारी कारी गाय को धोरो,धोरो दूध रे भई
भरया, भरया माटला , तायो तायो दूध रे भई
मचमचाती माटली छ्पछ्पाती छाछ रे भई
कसमसाती कांचली , चमचमाती खांच रे भई
घमड़ घमड़ घमड़ -घमड़ जावण वाजे
भाभी थारो बेरको हाले
मीठा मीठा बोल पे गीत जाग्या जाय रे भई
म्हारी प्यारी मायड़ी कूकड़ा बोलाय रे भई
जागो सूरज देवता म्हारी मां जगाय रे भई
सोना केरी जिन्दगी चमचमाती आय रे भई
घुमर घुमर घुमर-घुमर घट्टी चाले
मैया थारी घट्टी चाले
दादी थारी छाया में जनम बीत्यो जाय रे भई
भाभी थारो चूड़्लो चमचमातो जाय रे भई
म्हारे आंगण कोई भी नजर नीं लगाय रे भई
मैय्या थारी गोद में सबे सुख समाय से भई
ढमक ढमक, ढमक-ढमक नोबत बाजे
म्हारे घर नोबत वाजे
मैय्या थारी घट्टी चाले
भाभी थारो बेरको हाले
दादी थारो चरखो चाले
दादी थारो चरखो चाले.
टीप>
ऊजरो : उज्ज्वल
बेरको : हाथ में बांधे जाने वाले
बाजूबंद की लटें
मायडी़ : मां
नोबत : एक वाद्य.
Sunday, 10 June 2007
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