Friday, 15 June 2007

मालवी का प्रथम कवि दादा दुबेजी जाजम पे

मालवी कविता का दादा बा आनन्दरावजी दुबे की मुहावरादार मालवी को कई केणो ?
पचास का दशक में शिप्रा का घाट पे पेलो कवि-सम्मेलन व्यो थो तब मालवी को कोई एसो आयोजन नीं व्यो जीमे
आनन्दराव दादा की धारदार मालवी को रंग नीं बिखरयो ।रामाजी रई ग्या ने रेल जाती री दादा की अमर रचना हे।अणी मालवी जाजम पे दादा की वा हस्ताक्षर रचना जल्दी ज बांचोगा आप।दुबेजी की कविता जाणें जुवार बाजरा की फ़सल की तरे धरती से उपजी।दादा दुबेजी सन १९९६ में हमारा बीच से चल्या ग्या।उनकी मीठी मालवी की चमक आज भी बरकरार हे,,,,,,एक बानगी देखो आप

सुण बेटा, म्हारे याद अ इ ग्यो एक केवाड़ो
घर बांदो तो राखजो बाडो़
खेती करो तो लीजो गाड़ो
बेटा, जीका घर मे नीं हे बूढो़-आडो़
उना घर को पूरो हे फ़जीतवाडो़
बात छोटी सी हे पण कितरी तीखी और चोखी हे ।


आज दादा दुबेजी के याद करता अपण उनकी चर्चित रचना वांचां।


छोटा मूंडे बड़ी बात हूं बोलीरयो हूं

जाजम पर एक साथ बठी ने
तन नी देख्या मन परख्या हे
इनी परख में कोई रूठ्या ने , कोई हरख्या हे
घडी़-घडी़ का हेल - मेल से
पास-पडोसी मनख मनख की
छिपी जात हूं खोलीरयो हूं
छोटा मूंडे बड़ी बात हूं बोलीरयो हूं

कुण अईरयो यो तण्या हुवो रे
बीस किताब यो भण्यो हुवो रे
देखो अपणी अक्कल से यो
सांच-झूठ से खरी खोट से
हांसी ने यो फ़ांसीरयो हे
सुन्ना से यौ तुली गयो
चांदी का पलडें यो मोटो हे
छोटा मूंडे बड़ी बात हूं बोलीरयो हूं

सांची सांची खरी पोबात यो नी खोटो हे
कुण गरीब ने कुण अमीर हे
यो फ़सड्डी ऊ मीर हे
खूब बणायो थर्मामीटर
पूंजी को पारो सरके हे
कोण किखे कितरो बुखार हे
प्रीत प्यार सभी निगाह से
देखी परखी तोलीरयो हूं
छोटा मूंडे बड़ी बात हूं बोलीरयो हूं

एक दुबलो ने एक तगडो़ हे
देखो-देखो यो झगडो़ हे
कि डालर सब खे डांटीरयो हे
धीरज कोई खे बांटीरयो हे
घाव पुराणा धूजीरयो हे
लोवा साँते रूई बळे हे
वले चाक पण धुरी गळेबड हे
धीर गंभीरो तरूवर पीपल
छिपई गोयरा साथ बळे हे
दुनिया जाय उजाला में
मुश्यालची ठोकर मत खई जाजो
जाणो लंबी दूर चलनो हे दिन रात
रात कँईं याँ मत रई जाजो
बडी़ बात पर छोटो मूंडो
सुख साठे दुःख मोलीरयो हूं
छोटा मुंडे बडी़ बात हूं बोलीरयो हूं

टीपः
सुन्नाःस्वर्ण
डाटीरयोःडांट रहा है
लोवाः लोहा
छिपइःछिपकली
डालरःअमेरिकी मुद्रा

5 comments:

रवि रतलामी said...

मालवी जाजम को बहुत-2 शुभकामनाएँ :)

Sagar Chand Nahar said...

मांके अठे राजस्थान का मेवाड मां, मां लोग मेवाड़ी बोला हां अने वा तो मालवी सूं घणी मळे है।
मने तो घणो मजो आयो आपका का चिट्ठा ने भणीं ने। दूजा की जस्यान बिल्कुल यूं नी लाग्यौ कि आ कोई दूसरा राज्य की भाषा है। :)

nahar.wordpress.com
sagarchand dot nahar at Gmail dot com

Atul Sharma said...

दद्दा एक मालव को राम राम स्वीकारों। आपने या मालवी जाजम बिछई तो म्हारे घणो हाउ लग्यो। में बी इन्दोर कोज नानो हूँ। माथे हात फेरता रीजो।

Indya said...

Please add links to your articles on Hindi section of http://www.bestofindya.com

Unknown said...

malwi kavi ki jeevani par lekh deven to young generation ke liye preranadayak hoga