Sunday, 10 June 2007

म्हारो पेलो चिट्ठो...छोटी छोटी मच्छी कितरो पाणीं

यो एक ध्वनि गीत है.१९६० का पेलां लिख्यो थो. मंच म्हें खूब गायो..नाना-म्होटा सुणवा वाळा के खूब पसंद आयो और आकाशवाणी इन्दौर जींके हम मालवा हाउस का नाम से पेचाणां हां वठे से नरा दन तक वजतो रियो.यो एक पहेली गीत है.जीमे बचपन हे,जवानी हे और हे बुढा़पो.छोटी,थोडी़ सी बड़ी और सबसे बड़ी मछली का मारफ़त या एक पड़्ताल हे कि जीवन का सागर में कितरो पाणी हे..मतलब केवाको यो कि कितरी चुनोतियां हे. आओ आप भी गावो म्हारा साथ.

छोटी छोटी मच्छी कितरो पाणी...कितरो पाणी.
म्हें नी बतावां लावो गुड़धानी,लावो गुडधानी
लो गुड़धानी.

बचपन>
यो सरवर तीर किनारो हे
बस घुटना घुतना गारो हे
भई पाणी की बलिहारी जी
झलमल हे प्यारो प्यारो हे
लो आओ बतावां इतरो पाणी..इतरो पाणी.

ब ब ब ब हप्प....
घूघर मार धमीर को

जवानी>
या नदिया लेर लेरावे हे
कोई डूबे कोई तिर जावे हे
कोई भाटा डूबी जाए
लो आओ बतावां इतरो पाणी...इतरो पाणी.

ब ब ब ब हप्प...
घूघर मार धमीर को

बुढा़पा>
यो सागर गेरो गेरो जी
हाथी घोडा़ सब डूबे जी
सो पुरुस डुबे,सो बांस डुबे
सो झाड़ डुबे,सो पाड़ डुबे

लो आओ बतावां इतरो पाणी...इतरो पाणी.
ब ब ब ब हप्प,घूघर मार धमीर को

टीप:
पाड़:पहाड़

ब ब ब ब ह्प्प
घूघर मार धमीर को: या एक तरह की ध्वनि हे.गीत में साउण्ड इफ़ेक्ट लावा का वास्ते इंके इस्तेमाल कर्यो हे.

म्हारे पूरी उम्मीद हे कि यो पेलो पानड़ो आपके पसंद आएगा.मालवी के आगे बढा़वा का वास्ते आप भी कोशिश करो.इन चिट्ठा पे आप भी अपणी टपाल (चिट्ठी) भेजो ओर मालवी के पुर्न-जीवित करणे को पुण्य कमाओ..ध्यान रखवा की बात या हे कि अपणी बोली अपणी मां हे..ईंको सुहाग अमर रेवे एसी कामना करां. जै राम जी की.

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