सीधी सादी,कसी लुगायां हे
भोली भाली,कसी लुगायां हे
जनम की मां,करम की अन्नपूर्णा
भूखी तरसी, कसी लुगायां हे
पन्ना,तारा,जसोदा मां, कुन्ती
माय माड़ी, सकी लुगायां हे
कुंआरी बिलखे हे,परणी कलपे
घर से भागी,कसी लुगायां हे
गूंगी-गेली,वखत की मारी हे
खूंटे बांधी, कसी लुगायां हे
फ़ांसी-फ़न्दो,तेल ने तंदूर
लाय लागी,कसी लुगायां हे
टीप:
लुगायां:औरतें
माड़ी:मां
परणी:ब्याहता
लाय: आग
Sunday, 10 June 2007
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2 comments:
बहुत सुंदर, भावप्रण ग़ज़ल है.
श्रीमांनजी,
आपनै इयूं नीं लागै कै, माळ्वी. मरूभासा राजस्थांनी री एक बोली है. म्हे आपसूं अरज करू कै आप म्हारी website पर जावौ अर आपणै साहित रै संसार नै अणमोल बणावा वास्तै, मायड़ भासा नै मानता देरावा वास्तै मिळजूळ नै संघर्ष करां.
hanvant@gmail.com
www.freewebs.com/hanvant/
www.marwad.org
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