Tuesday, 17 July 2007

याँ सेर में सब देखा देखी का चोचला हे

चतरलाल की चिट्ठी


भई कचरा जी, राम राम।अठे सब मजा में है।
अपरंच समाचार यो है कि मालवा में पाणी खूब बरस्यो
ओर दादा आनंदरावजी दुबे की कविता याद अई गई...

बस बसंत्या बरसात अई गई रे।
जीवी ने जस जाण जे जसंत्या,
जिंदगी जई री थीपण अब हाथ अई गई रे,
बस बसंत्या बरसात अई गई रे।

बेन विचारी बसंती- भई की बाट जोई री थी।
राखी की रीत सारू, पीयर को मूँडो धोई री थी।
लाख राखी को तेव्हार थो, पण बीर बेबस थो।
अरे बोदा बरस की पीर थी, यो कां को अपजस थो।
सांची, सावण सुवावणो होतो,
बसंती गीत फिर गाती।
राखी, कंदोरा और पोंची,
संग पतासा और पेड़ा मन भर लाती।
तो बसंती रंग को लुगड़ो, घागरो घेरा को पाती।
अने पेरती ससराल जई जई रे,
ने केती बस बसंत्या बरसात अई गई रे...


मन-मयूर खूब नाची रियो हे। तीज-तेवार पास अइग्या हे । कचरा भई; ई तीज-तेवार आवे तो म्हने गॉंव की खूब याद आवे। सावण में कसी रंगत रेती थी। झूला बंधता था। हाथ-पग ओर हिरदे; सब आला रेता था। यॉं सेर में तो सब देखा-देखी का चोचला है। "भई-बेन' को प्रेम भी अब टी.वी. सीरियल जैसो बनावटी हुई ग्यो हे। घर की दाल-बाटी, चूरमो, खिचड़ी-कढ़ी परोस दो तो छोरा-छोरी नाक टेड़ी करे। "पित्जा-बर्गर' में इनकी जिबान खूब लपलपाय। म्हे देखी रियो थो कि पाछला बरस जद राखी बंधी री थी तो घर का दाना-बूढ़ा-सियाणा तो छाना-माना बेठ्या था पण छोरा- छोरी असी धमाल मचई रिया था कि कई कूँ। कोई दड़ी से खेली रियो हे, कोई टी.वी. का सामे बेठ्यो हे तो कोई कम्प्यूटर में इंटरनेट में काड़ी करी रियो हे। धॉं-धूँ मची हे साब ! असो लगी रियो हे जैसे कि आप मेला-ठेला में अई ग्या हो। म्हारो मन रोई दियो थो कि इ छोरा-छोरी कॉं जाएगा। पण केवा से ने रोवा से कई वे। जो संस्कार ने तामझाम हमारा जमाना ने टाबरा-टाबरी के दिया उकी पावती तो मिलेगा साब ! जरूर मिलेगा। पेले दाना-मोटा लोग बेठा वेता तो छोरा-छोरी चूँ नीं करता था। तकलीफ जद वे कि छोरा-छोरी की धमाल देखी के उनका "मम्मी-पप्पा' दॉंत काडे ने, खुस वे। संस्कार धूल-धाणी वई रिया है ओर आप खुस वई रिया हो। जमानो आगे जावे; किने बुरो लागे ! पण अपणा घर की रिवायत नी भूलणी चइजे। टेम असो हे कि पुराना को मान करो और नया को भी स्वागत करो। याज बखत की दरकार है। कसमसाता मन से या "टपाल' भेजी रियो हूँ। कुड़ा में पाणी अई ग्यो वेगा; तलाब में खूब पाणी भरायो वेगा। ओर म्हारा नाला रोड का कई हाल हे, मजे मे है कि नी ? सावन मास,राखी,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी नजीक अई री है... भेरू बा,जड़ावचंद,बसंतीलाल,रामा तेली,झब्बालाल,माँगू तेली,बद्रीजी कसेरा,हरिरामजी डाक साब सबके म्हारो जै गोपाल बॅंचावसी।

आपको भई चतरलाल
बक़लम : संजय पटेल

3 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय बाबुजी,
सादर नमस्कार !
आपका ब्लोग देखा था पहले भी --
कुछेक शब्दोँ के अलावा, मालवी समझ आ रही है.
बडी ही मीठी, मधुर भाषा है --
आप, कृपा बनाये रखेँ, आपके आशिष दीजियेगा.
स स्नेह, सादर,
-- लावण्या

Sanjay Tiwari said...

मेरा भी नमस्कार.

Prof. Dr. Shailendra Kumar sharma प्रो. डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा said...

प्रिय भाई,
सप्रेम नमस्कार.
मालवी जाजम भारतीय बोलियों के संवर्धन के लिये उदाहरण बन गया है. अन्य अंचलों के लोग भी इस से प्रेरणा ले सकते हैं.
बधाइयां स्वीकार करें.
आपका
डा.शैलेन्द्रकुमार शर्मा
हिन्दी अध्ययनशाला
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन [म.प्र.]