विवेक चौरसिया नौजवान खबरची हे.दैनिक भास्कर,रतलाम में काम करे हे.वरिष्ठ मालवी कवि दादा शिव चौरसिया का बेटा हे ; पेला-पेल मालवी जाजम पे आया हे अपणी उज्जैन की मीठी मालवी लई के.बाँचो आप उणकी चार कविता.
१)
नीरी री...नीरी री
घर में आटो पीसी री
नानो खाए रोटी बाटी
सककर की तो तीन-तीन आँटी
नीरी री...नीरी री
नानो पेने (पहने) झबला धोती
हाथ में कंगन गला में मोती
नीरी री नीरी री
२)
सोना की गाडी़ पे
नानो घूमे
साथी-संगी,नाचे झूमे
नाना के माथा पे लाल टोपी
माँ बई माथो चूमे
नाना का सारू (के लिये)
नरा (बहुत से) खिलोना
साथी - संगी झूमे
३)
बरबंड छोरो गरजे गाजे
चिड़ी बई आजे,
रेलकड़ी लाजे
मै तो लगऊं नी कालो टीको
हाथ से मसले मुंडो लाजे
मै तो खिलऊ नी मीठो सीरो
सूखा रोटा खाजे
४)
वारे वारे भई,
अब कराँ कई
अँई जाय कि वँई
वारे वारे भई
अब कराँ कई
अपणी तो पतंग फ़टी गई
काँ से लाए लई
अब कराँ कई
अपणो तो दूध फ़टी गयो
केसे खावाँ मलई
वारे वारे भई
अब कराँ कई
भई विवेक की या कविता हे छोटी छोटी पण इनमें गेरा अर्थ हे.आपके अच्छी लगी वे तो आप विवेक भई से चलती-फ़िरती मसीन पे ९८२६२-४४५०० पे बात करी सको हो..उणको ईमेल भी लिखी लो: v_chaurasiya@mp.bhaskarnet.com
Friday, 6 July 2007
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