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Friday, 23 March 2012

आयो हे मालवी को मान बढ़ावा को दन !




सबती पेला तो आपके विक्रम संवत का नवा वरस (२०६९) की दिल ती बधई. मालवा की संस्कृति और विरासत में महाराज विक्रमादित्य,महाकवि कालीदास,चम्बल-सिपरा,भृतहरि-पिंगला,रघुनाथ बाबा,डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन,डॉ.श्याम परमार,पं.कुमार गंधर्व,पन्नालालजी नायाब ,सिध्देश्वर सेन,आनंदराव दुबे,भावसार बा और श्रीनिवासजी जोशी का साते आपकी नईदुनिया शकर में दूध की तरे मिली हुई है. पाछले वरस उज्जैन ती यो हुँकारो उठ्यो थो कि विक्रम संवत मालवा ती सुरू वियो तो मालवी दिवस भी गुड़ी पड़वा का दन मनावा की सुरूवाव वेणी चईजे. विचार चोखो थो तो रंग भी चोखो आयो. अणी वरस नईदुनिया की पहल पे जद मालवी दिवस और जोर शोर ती मनावा को आव्हान वियो तो चालीस शहर-कस्बा और गामड़ा ती खबर मिली की मनावाँगा म्हें भी मालवी दिवस मनावाँगा.

तो सबती पेला आपके नईदुनिया आड़ी ती मालवी दिवस की बधई.मालवी दिवस मने तो मन खुस बे पण एक बात केणॊ चावूँ हूँ कि मालवी दिवस भी यातायात सप्ताह,हिन्दी दिवस और साक्षरता दिवस हरको नी मननो चईजे. कोरी-कोरी औपचारिकता वई गी ने मन ग्यो मालवी दिवस. आज केवाकी खास बात या हे कि म्हाँ एक करोड़ ती उप्पर मालवी लोगाँ ने अपणी बोली पे मान करणॊ सुरू करणो पड़ेगा. अणी कोई शक नी कि जिन्दगी में जणी तरे को फेरबदल है और जुवान पीढ़ी का जो तकाजा है वणी के देखता मालवी बोली पेचाण का संकट ती गुजरी री है. एक म्होटो कारण यो हे कि म्हाणा मालवा में मुगलाँ का जमाना तीज बारते ती लोग अई के कमई-धमई ले ने अपणी जमीन और हवा ती कमई के मजा करे.म्हे मालवी लोग भलमनसाईती और आलस में परदेस ती आया लोगाँ का चाळे लगी जावाँ और अपणी संस्कृति के भूली जावाँ. और तो और आप अपणा मालवा का हगरा विधायक के देखो;ई भई लोग म्हें मालवी लोगाँ का वोट डकारी ले हे पण मालवा की सांस्कृतिक विरासत वाते कोई चिंता नी पाले हे. कदि आपये मालवा का कणी विधायक के बदनावर,उज्जैन,धार,इन्दौर,मंदसौर,नीमच,रतलाम में मालवी में बोलता देख्यो हे. हाँ एक दादा सत्यनारायण जटिया जरूर हे जणा के म्हें मालवी बोलता हुण्या हे. आप कदी दक्षिण भारत,गुजरात,महाराष्ट्र,बिहार और पंजाब में जई के देखी लो वठे आप देखोगा कि वठे का विधायक और नेता अपणी बोली में बोले हे..

अपणा लोगाँ ने पं.कुमार गंधर्व को अहसान माननो चईजे जो कर्नाटक (धारवाड़) में पैदा विया;मुम्बई में गाणॊ हिक्या.मातृभाषा कानड़ी ने मराठी थी पण कबीर का मालवी लोकगीत गई के मालवा को मान बढ़ायो. वी मानता था कि मालवा (देवास) में वणाके दूसरो जीवन मिल्यो हे तो अठे की आबोहवा को कर्जो चुकाणॊ हे. आज मालवी दिवस का दन कुमार बाबा के माथो झुकावो को मन करे हे. मकबूल फिदा हुसैन,राजेन्द्र माथुर,मुश्ताक अली,बेन्द्रे,अफजल,उस्ताद अमीर खाँ,गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज,उस्ताद जहाँगीर खाँ,पं.अम्बादास पंत आगले,मेडम पद्मनाभन,सर सेठ हुकुमचंद,पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी,चंदू सरवटे,सुशील दोशी,प्रभाष जोशी,नरेन्द्र हीरवानी,स्निग्धा मेहता खासगीवाला,अमय खुरासिया,डॉ.श्यामसुंदर व्यास,विष्णु चिंचालकर,शालीनी ताई मोघे,मामा साहेब मुजुमदार ई हगरा मालवा का दमकता हीरा हे. ने म्हें लोगाँ ने हक ती अणाँ को नाम लेणॊ चईजे ने केणॊ चईजे कि ई हगरा मालव-पूत म्हाँकी आन,बान और शान हे. अणी का अलावा नवी पीढ़ी में मालवी बोलवा का वाते भी घणा प्रयास करवा की जरूरत हे. इंटरनेट पे मालवी का वास्ते और ज्यादा कोशिशाँ की जरूरत हे. और जरूरत हे अणी वात की कि जो लोग मालवा में पैदा विया हे,अठे नाम,ईनाम और रिप्या पईसा कमई रिया हे वी भी माय मालवी की सुध लेणी सुरू करे. जो लोग कविता,संगीत और दीगर कला का क्षेत्र में मालवी ती सुरू विया वी आज मालवी के भूली ग्या हे. वणाने चईजे कि वी जद भी टेम और मोको मिले ;मालवी से जुड़े.म्हें असा घणा लोगाँ ने जाणूँ हूँ जणाका घर परिवार मे मालवी री सुगंध हे पण वी आज जमाना की चकाचौंध में मालवी को दामन छोड़ चुक्या हे.

मालवी का नाम पे आकाशवाणी को खेती गृहस्थी नन्दाजी भेराजी और कानाजी जावा का बाद आँसूड़ा टपकई रियो हे.रेडियो पे मालवी लोकगीत की दुकान ठंडी वई गी हे. नईदुनिया थोड़ी-घणी और धुर में लट्ठ का माध्यम ती अपणो अवदान दई री हे. मालवी जाजम हर महीना में मिली बैठी के बतयईरी हे.एफ़.एम.चैनल,लोकल टीवी चैनल और वीणा,गुंजन सरीखी पत्रिका के भी चईजे कि वी मालवी के माकूल जगा दे. मालवी का उत्थान का वास्ते देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और म.भा.हिन्दी साहित्य समिति की भी महत्वपूर्ण भूमिका वई सके हे. इन्दौर प्रेस क्लब ती भी अरज हे कि ऊ भी मालवी वास्ते रूचि लेगा तो म्होटो काम वई सकेगा.सरकार के भी चईजे कि कम ती कम मालवी निमाड़ी कवि सम्मेलन को सिलसिलो फ़ेर ती सुरू करे.अणी हगरी रायबहादुरी का बाद म्होटी वात याज हे कि म्हाँ लोगाँ के घर-आँगण ती सुरआत करणी पड़ेगा.जठे भी जणी रूप में आप मालवी की सेवा करी सको हो.कम ती कम आज तो आप मालवी बोलवा वारा दोस्त-रिस्तेदार के मालवी दिवस की बधई तो दई सको हो.फोन करो नी तो समस करो..
जय मालवा-जय मालवी.

यो लेख संजय पटेल ये नईदुनिया मालवी दिवस (गुड़ी पड़वा - वि.स.२०६९) का मोका पे लिख्यो हे

Thursday, 7 July 2011

संजय पटेल के मालवी स्तंभ धुर में लट्ठ की नई कड़ी



















मालवा की सरसत माता शालिनी जीजी

जणी दन पेम-पट्टी लई के भणवा-लिखवा को पेलो दन वे वणीज दन मालवा की एक बड़ी शख्सियत पद्मश्री शालिनी ताई मोघे बैकुंठ वास सिधारिग्या. सौ कम दो का शालिनीजीजी म्हाणा मालवा का सरसत मात था.
कम पईसा लई के अच्छी शिक्षा घर घर में कसतर पोंचे अणी वाते जीजी म्होटो काम कर्यो.अठे इन्दौर का अलावा जोबट जेसा आदिवासी अंचल में भी ताई का करिस्माई कारनामा के म्हें जाणा हाँ. सबती म्होटी वात वणाकी सादगी थी. दो वरस पेला जद इन्दौर में वणाको नागरिक सम्मान वियो वणी दन भी या ममता की मूरत अपणी मराठा सूती साड़ी में मंच पे बिराजमान थी. वणाका हजारो विद्यार्थी सम्मान कारज में आया था ने शालिनी जीजी के पाँवधोक करी रिया था. आज जद इन्दौर विद्या बेचवा की म्होटी मंडी वई ग्यो हे शालिनीजीजी के याद करी के श्रध्दा ती माथो झुकी जावे हे. यो मालवा और खासकर इन्दौर को बड़भाग हे कि अठे दासगुप्ता साब,डेविड साब,बड़ी टीचर पद्मनाभन और शालिनी ताई सरीखा विद्या का दानदाता विया ने वणाए चार-चार पीढ़ी के शिक्षा दान को पावन कार्य कर्यो.धुर में लट्ठ को मुजरो अणाँ हगरा लोगाँ के.

कठे गी वा प्यार भरी चिट्ठी !

आज जिनगी और कारोबार की आखी चिट्ठी-पत्री ई-मेल पे अई गी हे. रई-सई कसर अणी कर्ण-पिसाच(मोबाइल)का माय भराया एस.एम.एस.करी दे हे. एक जमानो तो जद अपणा गाम ती दाना-बूढ़ा खत लिखता तो वठे का आखा दुख-सुख को आँखो द्ख्यो हाल हामे अई जातो थो.कठे गमी वी हे,माताजी री पूजा कणी दन वेगा,खेत में बुवई वई गी हे,कणी रा अठे छोरो व्यो,कणी घर में गमी वई गी हे यो आखो लेखो-जोखो एक नानका पोश्टकारड पे अई जातो थो. लिखवा वारी बेन-बेटी वेती तो बाँचता-बाँचता आँख्याँ भिंगई जाती. लिखवा वारा को भी एक श्टाइल वेतो.सुरु वेती अपरंच अठे समाचार ती ने चिट्ठी जठे खतम वेती वठे नर्मदे हर ! सुखी रहो ! और जय द्वारिकाधीश,खुदा हाफ़िज़ लिख्योज रेतो.एक पक्का टेम पे डाकिया बाबू आवता ने अपण हगरा वणी टेम पे बेसब्र रेता कि आज अपणी कोई चिट्ठी डाकिया दादा लाया की नी. डाकिया बाबू ती भी अपण लोगाँ का घरू रिस्ता वई जाता. वी अपणा घर रा हगरा लोगाँ के जाणता ने जणी का नाम की चिट्ठी वेती वणी को नाम लई के केता कि आज तो बाबूजी री चिट्ठी अई हे.आज जीजी बई की राखी अई गी हे. गमी की चिट्ठी को पोश्टकारड खूणाँ ती फ़ट्यो थको रेतो ने वणी में कारी साई ती हरूफ़ लिख्या रेता. हाथ की लिखी गमी की चिट्ठी में वाचवा वारा का मन में भी वसीज पीड़ा रेती जस तर अपणा घर में गमी वी हे. तीन दन बाद घाटा-नुक्ता-बारमा ने गोरनी की चिट्ठी आखो कुनबो हाथे बेठी के लिखतो. आज गमी री चिट्ठी भी मसीन ती छपवा लागी. पेला आपने याद वेगा कि राखी रा दन छुट्टी का बाद भी डाकिया बाबू अपणी जीजी-बई की चिट्ठी लई के आ पधारता ने अपण भी वणाके राजी खुसी चा-पाणी करता नीं तो ईनाम देता.दादा रामनारायणजी उपाध्याय,पं.भवानीप्रसाद मिश्र,पहल का संपादक ज्ञानरंजन और दादा बालकवि बैरागी की ताबड़तोब चिट्ठी-पत्री के आज जमानो याद करे. दादा बालकविजी तो आज भी हवेरे चार-पाँच वजे अपणा डाबा हाथ ती कम ती कम पचास-पिचोत्तर पोश्टकारड लाल-डिब्बा में न्हाके.जद वी लिखे अतरी तो नरी डाक वणाका आँगण भी आवे.यो तो जीवन को लेण-देण हे साब.आज ईमेल और समस में ऊ चिट्ठी को मीठोपण और सस्पैंस कोनी रियो जो लिफ़ाफ़ा में बंद चिट्ठी में रेतो थो.आज आदमी उतावल में हे. हामे पड़्यो मोबाइल उठायो ने वात करी ली.चिट्ठी लिखवा में टेम चावे ने पछे वणी के पोस्ट/कुरियर करवा के वजार जाणो पड़े.तो म्हें अब चीजाँ के बदली रिया हाँ और दोस दई रिया हाँ कि जमानो अब वेसो नी रियो.भई तम भी तो बदली ग्या हो.जीवन की तसल्ली,आसूदगी और मन की सांति अपणा हात तीज दाँव पे लगई रिया हाँ.कठे एक लतीफ़ो बाँच्यो थो कि ठामड़ा साफ़ करवा वारी बई जदे एक दन काम पे नी अई तो दूसरा दन सेठाणीजी ने पूच्छो कि कारे रामप्यारी तू काले अई कोनी ने खबर भी नी भेजी ? तो रामप्यारी बेन बोल्या बई साब आपये फ़ेसबुक पे म्हारो स्टेटस नी देख्यो ? म्हें वणी पे लिखी दियो थो कि म्हें डबल धमाल देखवाने जई री हूँ !



साब की कूकी सरकारी इसकूल में:

तमिलनाडु का इरोड जिल्ला का का पंचायत का प्रायमरी इसकूल में पेली जुलाई का दन जो माँ-बाप अपणा बच्चाहोण का प्रवेस खातिर कतार में उबा था वणा में जिला का कलेक्टर साब आर.आनंदकुमार और वणाकी धरमपत्नी श्रीविद्या भी था. स्कूल का माड़साब हमज्या कि आज साब दोरा पे आया हे तो वी प्रधान-अध्यापकजी के बुलई लाया.दुआ-सलाम विया बाद जद साब ती बात वी तो मालम पड्यो कि साब अपणी बेटी गोपिका के सरकारी इसकूल में भर्ती करावा के आया हे.जतरा भी दूसरा ऊबा था वणाकी कान के विश्वास कोनी की म्होटा साब री कूकी अपणा टाबरा-टाबरी हाते भणेगा.दो-चार पत्रकार भी पोंच्या तो कलेक्टर साब ने क्यो “नो कमेंट्स” जादा कुरेदवा पे अतरोज बोल्या कि म्हें भी सरकारी इसकूल में भण्यो ने आई.ए.एस.वण्यो तो म्हारी नानकी भी अठे क्यूँ नी अई सके हे.आज जद म्हें देखी रिया हाँ कि म्होटा साब लोग का छोरा-छोरी दमखम ती नामचीन इसकूल में भणे-लिखे हे तो आनंदकुमारजी का अणी इरादा के सलाम करवा को जी चावे हे.

Tuesday, 28 June 2011

संजय पटेल का मालवी स्तंभ धुर में लट्ठ> नई क़िस्त.

















मच्छु चाचा की मोटर:

मुकाम : गाँव सैलाना(जिलो:रतलाम) मोटर इश्टैण्ड पे एक म्होटी मोटर ऊबी है. मोटर को माडल पुराना जमानो को डॉज हे. आज जसतर टेम्पो ट्रेवलर आवे हे वतरी मोटी.गाड़ी का मालिक और ड्रायवर हे मच्छु चाचा. दानाबूढ़ा,बच्चा-बच्ची हगरा वणाने मच्छु चाचा के हे.मच्छु चाचा बरात और दीगर काम ती सवारी लावा-लई जावा को काम तो करताज पण वणाको बखाण धुर में लट्ठ पे करवा को कारण हे कि सैलाना (सैलाना के म्हें रतलाम आड़ी का लोग हल्लाणा भी काँ हाँ )में कोई मनख मांदो पड़ी जातो तो उके रतलाम नी तो इन्दौर लावा-लई जावा को काम मच्छु चाचा बेझिझक करता. वी खुद मुसलमान था पण वी मरीज का घरवाळाहोण से नी पूछता कि मरीज अमीर है-गरीब,मुसलमान हे हिन्दू . बस मोटर इश्टार्ट करी ने न्हाक दियो गियर इन्दौर आड़ी. कतरा परिवार वेगा सैलाना में जिनका परिवार को माफ़िक दवा-दारू ने इलाज मच्छु चाचा की डॉज गाड़ी का हस्ते वियो ने जान वंची.आज जद में सड़क पे म्होटी म्होटी एम्बुलेंस देखूँ तो म्हने मच्छु चाचा की याद अई जावे. कमीज,चूड़ीदार और गला में रूमाल राखवावारा मच्छु बा अबे नी रिया पण वणाकी दानत और अच्छई आज तक जिन्दा है.मच्छु चाचा जेस नरा दयालु लोग,बाग,सरदारपुर,मनावर,कुक्षी,बड़वानी,अंजड़,खेतिया,धार,कन्नोद,मक्सी,जावरा,सीतामऊ जैसा दीगर ठिकाणा पे भी होयगा जणा का नाम दूसरो वेगा पण इंसानियत का तकाजा मच्छु चाचा सरीखाज वेगा. आज जद अपण सेर में देखी रिया हाँ कि पाड़ोस में खूनमखार वई जावे ने लोग बाण्डे नी आवे ने कणी दुखियारा ने अस्पताल पोंचावा में झिझके तो वगर भण्या मच्छु चाचा इंसानियत का पीएचडी नजर आवे हे.

जलसा में जलवो:

महानायक बच्चनजी री वऊ एस्वर्या रा पग भारी हे. आखो देस ने वणीकी टीवी चैनल चिंता करी री हे कि जलसा में झूलो बंधावा की खुसी अई हे. अच्छी वात हे,कणी को वंस वदे तो म्हाने भी खुसी वे.पण म्हने या वात समझ नी पड़ी री हे कि अणी अतरा म्होटा मुलक में जठे कदम कदम पे समस्या का रंडापा हे वठे एक हीरोइन की जचकी में टीवी चैनल्स को अतरो अंदर उतरवा को कई कारण हे.म्हाने कारण यो नजर आवे हे कि अणाँ बापड़ा चैनल वारा होण का पास कोई खबर ईज कोनी. अन्ना को अनसन वई ग्यो.बाबा रामदेवजी पाछा आश्रम में अई ग्या.घोटाळा तो जनता ऊबी गी हे तो अबे चैनल मुसालो कई परोसे ? तो चलो साब ऐस्वर्या बई को जापो लई लो.म्हारा ख्याल ती अमिताभजी ने जया बई अपणी लाड़ी की अतरी चिंता नी करी रिया वेगा जतरी ई चैनल्स करी री हे. वी कई खावे,दवई ले,वणाने कतरा मईना चाली रिया हे...म्हें भी धुर में लट्ठ आड़ी ती यो हमीचार जलसा पे पोंचावाँ हाँ कि कदि जलवा पूजन पे मालवी लोकगीत गावा वाते लुगायाँ चावे तो तैयार हे . जलसा में जापो ने जलवा में मालवी गीत...वाह ! कई मजमो वेगा साब.अपण मालवावासी भी अणी जचकी वाते तैयार हाँ और मोको पड्यो तो जापा का लाडू भेजवा की तैयारी भी राखाँ हाँ.

भींजवा को न्योतो:

असाढ़ महीनो सबाब पे हे. इंदर राजा अपणी पूरी मेहरबानी पे आया कोनी. करसाण भई चिंता भी करी रिया हे पण नीली छतरी वाळा दाता के वणाकी जादा चिंता हे ने वी एकदम टेम पे झमाझम वरसेआ अणी में दो मत कोनी. इण झमाझम में पाणी की कसर पूरी वई जायगा. खास वात आपसे केवाकी या हे कि आजकल देखवा में अई रियो हे कि माता-बेनाँ अपणा टाबरा-टाबरी के पाणी में खेलवा से रोके. म्हें आप जद अपणा बाळपण में था तो या आजादी रेती थी कि पाणी वरसताज आँगण नी तो छत पे जई की खूब तरबतर वेता था. चिल्लाता था..पाणी बाबो आयो –ककड़े भुट्टा लायो....पण अबे तो आज रा जमाना रा छोरा छोरी तो नवा नवा नखरा करे. अरे पाणी को आणो तो कुदरत की किरपा बरसवा की पावती हे जीजी. इण छोरा छोरी होण के रोको मत ..भींजवा को .या बदन की तरावत मन में पोंचेगा तो वी जाणेगा कि कुदरत को करिस्मो कई वे वे. आपकी कालोनी का मूँगा मूँगा न्हावा का वी कईं के शॉवर रा नीचे ऊ मजो कठे जो सीधा आसमान ती उतरी री बूँदा में भींजवा ती मिले हे. इंदर राजा का नखरा को कारण यो भी वई सके हे कि वी सोची रिया हे कि म्हें वरसूँ ने म्हारा स्वागत करवा के लोग-लुगाँयाँ तो सड़क पे उतरेज कोनी ?मजो जद हे जद पाणी बाबो बरसे,मनवो हरसे,फ़ेर भींजवा का बाद आप म्हाँकी भाभी रा हात रा झन्नाट भुज्जा खावो ने चाय का सबड़का लो. यो अमोलक आंणद वरसाद में ज मिले हे. कदि आप सास्त्री संगीत सुणवा को मजो लेता हो तो पं.भीमसेन जोशी,उस्ताद अमीर खाँ साब को मिया मल्हार ने मेघ हुणो. देखो तो सरी ई राग-रागिनियाँ मौसम का मिजाज का साथ केसो अनोखो मजो देवे हे. म्हने आपरी मेफ़ल ने हाते भुज्जा रा न्योता रो इंतजार हे..बुलई रिया हो कि नी ?

जोग-लिखी:
-२५ जून का दन म.प्र.लेखक संघ,महेसर ने निमाड़ी का घणा मानेता कवि,साहित्यकार दादा बाबूलालजी सेन की वरसी पे एक मजमो कर्यो.अच्छी वात हे भई लोग..अपणा दानाबूढ़ा साहित्यकार के याद करणो अपणो फरज हे.

-जद आपती आगळी मुलाक़ात वेगा वणी टेम जुलाई महीनो लगी जायगा. इण महीणा में मदनमोहन जसा लाजवाब संगीतकार और अमर गायक मो.रफ़ी सा. अपण सब ती बिछड्या था. अपण कई कराँ कि इण महान कलाकाराँ कि वरसी का दन विविध भारती हुणी लाँ ने वी छुट्टी. धुर में लट्ठ अरज करे हे कि आप आखा महीना में जद भी टेम मिले मदनमोहन और रफ़ी साब को संगीत हुणो.कसा बेमिसाल गीत दई ग्या हे ई दोई अपणी श्रोता-बिरादरी के.

Wednesday, 8 June 2011

संजय पटेल के मालवी स्तंभ लट्ठ की नई कड़ी


पेरीन काकी म्हें थाँके साते हाँ:

होमी दाजी मजदूराँ वाते जो कर्यो हे ऊ कणी री पावती रो मोहताज कोनी. एक जमानो थो के पं.नेहरू दाजी री बात के तवज्जो देता था. आज दाजी म्हाँका बीच कोनी ने वणाकी जीवन-सखी पेरीन दाजी भण्डारी मिल रा पुल रो नाम दाजी पे वे असी मांग करी री हे. म्हें आखा मालवा का लोगाँ की आड़ी ती यो भरोसो पेरीन काकी ने देणो चावाँ हाँ कि सरकार एक पुल रो नाम दाजी रा नाम पे नी राखेगा तो भी दाजी की मूरत म्हाँका मन में अम्मर रेवेगा. दाजी ये मजदूर आंदोलन वाते जो कर्यो हे ऊ अमोलक हे.म्हाँ हगरा होमी दाजी ने पेरीन काकी थाँकी कुरबानी के सलाम करा हाँ.

कबीरी रंग में डूब्यो मालवो:

मालव माटी रा सपूत दादा पेलादसिंह टिपानिया पदमसिरी तो हुई ग्या पण ऊँका अलावा वणाए एक ओर म्होटो काम यो कर्यो हे कि वी पाछला वरस ती आखा मालवा में एक कबीर यात्रा निकाली रिया हे. कबीर की फ़कीरी की बारा में जादा बोलवा की दरकार कोनी पण पेलाद दादा ये अणी मजमा में जुदा-जुदा रंग में कबीरी गीत गावा वारा कलाकार नोतवा को जो म्होटो काम कर्यो हे ऊ गजब को हे साब. गुजरात,राजस्थान,बंगाल,महाराष्ट्र का नामी कलाकार मालवा में घूम्या ने दाता कबीर की चादर का रंग में लोगाँ के भिगोया वा कमाल रो काम हे. म्हारा सेर इन्दौर में भी या यात्रा आई थी पण हाँची कूँ टिपानियाजी का गाम लूनियाखेड़ी रा हल-बख्खर चल्या खेत में बेठी के कबीर सुणवा जो आणंद आयो ऊ ठंडी मसीन (ए.सी) वारा हाल में नी थो.

कबीरबानी का माहौल में म्हारी वात घणामानेता संगीतकार पं.स्वतंत्रकुमार ओझा ती वी. वी बोल्या कि कबीर को पेलो रेकॉर्ड सतीनाथ मुखर्जी री आवाज में आयो थो. पछे पं.ओंकारनाथजी ठाकुर,जुथिका रॉय,शांता सक्सैना,सी.एच.आत्मा,लक्ष्मी शंकर रा बाद आकाशवाणी इन्दौर का जाना-माना कलाकार पं.राजेन्द्र शुक्ल रा कबीरी पद को जलवो भी बिखर्यो थो. पं.कुमार गंधर्व ये कबीर के मालवी में गावा को चोखो काम कर्यो ने वणाने अणी काम वाते खूब मान भी मिल्यो.मालवा हाउस री बेहाली वात अपण बाद में कराँगा पण राजेन्द्र शुक्ल जसा बेजोड़ गावा वारा ने आखो मालवो भूली ग्यो यो ठीक नी हे. ओझाजी,शुक्ल,नरेन्द्र पण्डित,रामकिशन चंदेश्री,रामचंद्र वर्मा.एस.के.पाड़गिल,सुमन दाण्डेकर,रंजना रेगे जसा नामी ने सुरीला कलाकार कठे है,कई करी रिया हे,ठा कोनी. हुए नामवर बेनिशाँ कैसे कैसे,जमी खा गई आसमाँ कैसे कैसे ?

गर्मी की छुट्याँ ने नानेरो:

अबे कदी इम्तेयान वई जाय ने कदी गर्मी री छुट्याँ अई जाय;मालम नी पड़े,पेलाँ छुट्याँ वेताज अपण आपणा नानेरा में जाता रेता.आम रस,सैवैया,कुल्फ़ी,बरफ़ का लड्डू री फ़रमाइसाँ वेती ने नाना-नानी खुसी खुसी अपणा नवासा-नवासी री वात राखता. अबे परीच्छा वेताज दूसरी कक्षा री भणई-लिखई सुरू वई जाय ने जद छुट्टी वे तो टाबरा-टाबरी कम्प्यूटर गेम,टीवी,मोबाइल का साते अपणो टेम गुजारे.बाकी कसर आईपीएल जेसा चोचला करी दे. पेला नाटक-नाच का सिविर वेता था.छुपा-छई री धूम वेती थी. पाँच्या,चोपड़,कैरम,सितोलिया जसा देसी रमकड़ा था; पण अबे आखो जमानो मसीनी वई ग्यो हे. रिस्ता भी मसीनी वई ग्या हे. और हाँ अणाज छुटुयाँ का दन में आपणा चौका में अचार-लूँजी री खुसबू री रंगत जमती थी,अबे हगरा अथाणा पैक बंद आवा लाग ग्या. कैरी चूसवा का दन तो लोग भूलीज ग्या हे. रसना,कोको-कोला,पेप्सी का जमाना में ठंडई और नीबू की सिकंजी ठंड़ी पड़ी गी हे. इण चीजाँ रा हाते अपण घर-परिवार री गप्पा गोष्ठी भी भूली ग्या हाँ. भगवान भलो करे अणी जमाना रो...वी दन दूर नी जद सूरज-पूजन,जलवा पूजन,मांण्डवो,रातीजोगो,गोरनी,बत्तीसी,मायरो जैसा कारज का बाराँ में बतावा वारा लोग अपणा कने नी वेगा.लोग के हे कि कम्प्यूटर गूगल बाबा हगरी जानकारी राखे.जरा अणा जगत-ज्ञानीजी ती अणा कारज को अर्थ तो पूछो..म्हारा खयाल ती गूगल बाबा रा माजना का काँकरा वई जायगा.

आनंदा बा री याद:

आपने जै राम जी की कूँ वणी का पेला आज अपण
मालवी कविता का दादा बा आनंदरावजी दुबे री
एक नानकड़ी कविता बाँची लाँ.मुलाहिजो फ़रमाओ:

या प्रेम प्यार और हिलण-मिलण की है पगडंडी
इण पर भैया नित-नित हम चल्या कराँ
नी तो इण पर अहंकार और तिरस्कार की
बेल कटीली,घास पात उगी आवेगी
और आने वाली पीढ़ी ईंके साफ़ कईं कर पावेगी ?

Sunday, 16 January 2011

थोड़ी-घणी:घोड़ा मरग्या,गधा को राज आयो

देश का प्रमुख हिन्दी दैनिक और मालवा का शब्द-प्रहरी नईदुनिया मालवी की बड़ी नेक ख़िदमत कर रहा है.
प्रत्येक सोमवार को थोड़ी घणी शीर्षक के स्तंभ में मालवी-निमाड़ी रचनाओं का प्रकाशन नियमित रूप से होता है.थोड़ी-घणी के ज़रिये कई नये लिखने वालों को अपनी बात कहने का मंच मिला है और ख़ासकर मालवी-निमाड़ी ग़ज़ल को मुकम्मिल स्थान मिलना शुरू हो गया है. कोशिश रहेगी कि हर हफ़्ते आपको थोड़ी-घणी की लिंक दे दिया करूं जिससे मालवी जाजम के पाठक थोड़ी-घणी का रसास्वादन भी कर सकें....आप सभी को नये साल और मकर संक्रांति की राम राम.

आइये बाँच लेते हैं 10 जनवरी की थोड़ी-घणी(नईदुनिया)

Friday, 31 December 2010

मालवी को मिले राजभाषा का मान


लोकप्रिय हिन्दी दैनिक नईदुनिया में पिछले दिनों श्री राजेश भण्डारी का लिखा एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें मालवी को राजभाषा बनाए जाने की ठोस दलील दी गई है.मालवी अनुरागियों के लिये यह लेख नईदुनिया से साभार और श्री भण्डारी को इस मुद्दे को उठाने के लिये मालवी-जाजम की ओर से हार्दिक साधुवाद.

मालवा क्षेत्र पूरे विश्व में विख्यात है। यहॉं की शब-ए-मालवा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मालवा का मौसम, मालवा का भोजन, मालवा की रातें और "मालवी' भाषा विश्वविख्यात है।

मालवी के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य माने जाते हैं। मुस्लिम व लोकतंत्र शासन में मालवी को सबसे ़ज़्यादा उपेक्षित किया गया। मालवा क्षेत्र शुरू से ही संपन्न व शांत क्षेत्र रहा है जिसके फलस्वरूप बाहरी लोगों का क्षेत्र में आना स्वाभाविक रूप से होता गया, लेकिन नतीजा यह हुआ कि मालवी भाषा ग्रामीण भाषा बनती चली गई व हिन्दी खड़ी शहरी क्षेत्र में उपयोग में आने लगी। जो मालवा राज्य व केन्द्र सरकार को टैक्स के रूप में भरपूर राजस्व देता है उसकी मातृभाषा के विकास के लिए सरकार ने कुछ भी प्रयास नहीं किया। शहरों में मालवा उत्सव के नाम पर आदिवासियों व लड़कियों का नृत्य करवाकर मालवी-संस्कृति का दिखावा करवा दिया जाता हैजिसका मालवी भाषा से दूर-दूर तक कोई मेल नहीं होता है।

अमेरिका की एक एनजीओ २००९ में करोड़ों रुपए खर्च कर बिजुमन वर्गीस, मैथ्यू जॉन, नेल्सन सेम्योल द्वारा मालवी भाषी क्षेत्र का एक सर्वे करवाया। इसमें २८० पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की गई है। इसके अनुसार मालवी भाषा उज्जैन, महिदपुर, नागदा, रतलाम, जावरा, महू, इन्दौर, मंदसौर, नीमच, मनासा, राजगढ़, जीरापुर, नरसिंहगढ़, सीहोर, आष्टा, मनावर, सरदारपुर, धार, बदनावर, भोपाल, बैरसिया, झालरापाटन, गंगधार आदि तालुका में लगभग १ करोड़ लोग मालवी भाषा बोलते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों से पूछा गया है कि उनकी भाषा में लिखा गया साहित्य यदि उपलब्ध हो तो क्या वे पढ़ेंगे ? तो ९५ प्रतिशत लोगों ने "हॉं' में जवाब दिया। इसका मतलब यह है कि सरकार द्वारा मालवी साहित्य की रचना, विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

ख़ुशी की बात यह है कि विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा एमए उत्तरार्द्ध (हिन्दी) के विद्यार्थियों को मालवी साहित्य पढ़ाया जा रहा है। मंदसौर के पीजी कॉलेज में मालवा माटी की महक, मालवी भाषा का लोक साहित्य पढ़ाया जा रहा है। उक्त एनजीओ की रिपोर्ट में "नईदुनिया' अख़बार का मुख्य रूप से ज़िक्र किया गया है कि यह ही एकमात्र अख़बार है, जो मालवी लोक साहित्य के प्रकाशन में अग्रणी है।

मालवी को राजभाषा बनाने के लिए मालवा क्षेत्र के सभी मालवीभाषी लोगों, राज्य सरकार, यहॉं के जनप्रतिनिधियों व यहॉं के साहित्यकारों को सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा, तभी मालवी को राजभाषा का दर्जा दिलाया जा सकेगा। यदि समय रहते इस ओर प्रयास नहीं किए गए तो मालवी के अस्तित्व को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

साहित्य की हम बात करें तो मालवी का एक शब्दकोष डॉ. प्रहलादचंद जोशी द्वारा तैयार किया गया है जिसका प्रकाशन दिल्ली की किसी प्रकाशक कंपनी द्वारा किया गया है। मालवी की सेल्फ़ स्टडी बुक, जो डॉ. जोशी द्वारा लिखित है, भी आसानी से उपलब्ध है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग, ज़िला प्रशासन व राज्य सरकार का संस्कृति मंत्रालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३४५ में राज्य सरकार मालवी भाषा को राजभाषा का दर्जा देने में सक्षम है।