Thursday, 17 April 2008

विख्यात मालवी लोकगीत गायक रामअवतार अखण्ड को भेराजी सम्मान


जाने माने मालवी लोक-गीत गायक श्री रामअवतार अखण्ड को सन 2008
का भेराजी सम्मान दिया जा रहा है। उज्जैन में 18 अप्रैल को आयोजित
एक भव्य समारोह में अखंडजी इस सम्मान से नवाज़े जाएंगे।
अभी तक इस सम्मान से बालकवि बैरागी,नरहरि पटेल,नरेन्द्रसिंह तोमर,आनन्दराव
दुबे,भावसार बा,प्यारेलाल श्रीमाल,हरीश निगम,शिव चौरसिया,सिध्देश्वर सेन आदि
कई विभूतियां सम्मानित हो चुकीं हैं। अखण्डजी सगुण – निर्गुण मालवी गीतों
के सुमधुर गायक हैं। ये जानकारी देना भी प्रासंगिक ही होगा कि भेराजी यानि
आकशवाणी इन्दौर के किसान भाइयों के लोकप्रिय कार्यक्रम के आशु-प्रसारणकर्ता और
जाने माने लोकगीत गायक थे।ये सम्मान भेराजी का परिवार पिछले बीस वर्षों से
उज्जैन में आयोजित कर रहा है। कोशिश की जाती है कि मालवा से ही जुडे हुए
किसी कलाकर्मी को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाए।

कलाकार सदैव ही अपनी सभी रचनाओं की प्रस्तुति मन-प्राण से देता है। हर प्रस्तुति में भावनाओं और गायकी के अनूठे रंग भरता है। लेकिन कोई एक प्रस्तुति ऐसी होती है जो कलाकार की हस्ताक्षर रचना बन जाती है। श्रोताओं को भी ना जाने क्यूँ उसी एक रचना को बार-बार सुनने में अधिक रस मिलता है। इसी तरह से श्री रामअवतार अखण्ड का भजन "दरसन देता जाजो जी, सासरिया की बात पीहर में केता जाजो जी' श्रोताओं में अत्यंत लोकप्रिय है। आकाशवाणी इन्दौर पर रेकॉर्ड किया गया निर्गुणी छाप वाला यह लोकगीत विविध भारती के प्रातःकालीन प्रसारण "वंदना' में सैकड़ों बार सुना गया! विविध भारती जैसी लोकप्रिय राष्ट्रीय प्रसारण सेवा में इस भजन का बजना मालवी लोक संस्कृति का गौरव-गान है।

लोक संगीत प्रकृति की अद्भुत देन है। यही वजह है कि मालवा का लोक संगीत मन को गहराई तक छूता है। चंबल, शिप्रा-सी पवित्रता लिए और कल-कल करते मालवा के भोले लोकगीत घर-आँगन, रिश्तों, तीज-त्यौहारों और सूरज-चंदा, नदी, पवन, आकाश जैसे तत्वों का बखान करते हैं। दुनिया कितनी ही आगे बढ़ जाए, मालवा का लोक संगीत हमेशा मनुष्य के अस्तित्व के मूल का स्मरण दिलाता आया है। मालवा के लोक संगीत की सबसे बड़ी ताक़त वह सहृदयता है जिसमें सूर, तुलसी, कबीर, मीरा, गोरख की पवित्र बानी उन्मुक्त होकर गूँजती है। जब-जब मालवा के लोक संगीत को सरल, सहज और आडंबरविहीन स्वर मिला वह कुछ अधिक ही चहक उठा है। वह कभी मन की ख़ुशी बढ़ाता, कभी थके मन को दिलासा देता, कभी जीवन के संघर्ष की पूछताछ करता है; तो कभी मांगलिक प्रसंग की धजा बनकर घर-आँगन में गूँजता यह मालवा का लोक संगीत जीवन के प्रमाद को नष्ट कर उल्लास की सृष्टि करता है।

श्री रामअवतार अखण्ड ने मालवा के लोक संगीत को आगे बढ़ाने में हमेशा अपना विनम्र योगदान दिया है। प्रचार-प्रसार से परे श्री अखण्ड उन खरे गायकों में से हैं जो मालवी लोकगीत गा कर स्वयं आनंदित होते हैं, यह अलग बात है कि उनके आनंद को एक बड़ा श्रोता-वर्ग सहज अपने हृदय में समेट लेता है। शब्दप्रधान गायकी कहलाने वाला मालवा का लोक संगीत किसी शास्त्र में बंधा हुआ नहीं है, वह तो गायक की स्फूर्त भावना का इज़हार करता है और श्री अखण्ड के कंठ से झर कर न जाने कितने श्रोताओं के आनंद का हिस्सेदार बनता है। श्री अखण्ड की गायकी सरलता से सजी हुई है और वह हमेशा इस बात को व्यक्त करती रही है कि लोक संगीत से अभिव्यक्त होती सुरभि पहले गाने वाले को आनंदित करे तो वह अपने आप सुनने वाले की अमानत बन जाती है।
श्री रामअवतार अखण्ड का सरल-सहज स्वर मालवी परिवेश का सुरीला प्रतिनिधि है। सन् २००८ का भेराजी सम्मान इस भावुक कलाकार को दिया जा रहा है।

श्री अखण्ड की प्रथम कैसेट का शीर्षक-गीत "प्यारे लागे रे म्हारो मालवो देस' मालवा के उत्सवों, मेलों, विश्वविद्यालयीन युवा उत्सवों और ना जाने कितनी टी.वी. फ़िल्मों के पार्श्व में बजता रहा है। सादा धुन और मीठी मालवी में भीगा यह गीत कुछ इतना सुना जा चुका है कि यह स्वतः ही लोकप्रिय हो गया है। श्री अखण्ड जैसे लोकगायक की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। जब कोई गीत अवाम की ज़ुबान पर चढ़ जाता है तो समझिए उसने लोकप्रिय होने का पद पा लिया !
-संजय पटेल

2 comments:

एक पंक्ति said...

आपका लेख इस लोककर्मी की तपस्या का पता देता है.बधाई पहुँचाएँ अखण्ड जी को हमारी.

धर्मेन्‍द्र चौहान said...

बा साब तमारे म्‍हारी राम राम। तमने याद दिलई दी म्‍हारे राम अवतार अखंड की। जब हूं छोटो थो दस पंद्रा साल को। जब इनको एलबम आयो थो उनको गाणो याद अइरियो है'प्‍यारो लगे रे म्‍हारो मालवो देश' हूं आजकल दिल्‍ली में रई रियो हूं। मालवी ब्‍लॉग शुरू करने की कोशिश करी रियो थो। एतरा में खोज बिन में तमारो ब्‍लॉग मिली गयो। म्‍हारे भोत मदद मिलेगी। राम अवतार को गाणो याद अइगयो। राम अवतारजी से बात होय तो म्‍हारी तरफ से बधाई दई दो जो।
बा साब के फिर म्‍हारो राम राम