Saturday, 21 November 2009

सतीश श्रोत्रिय की मालवी ग़ज़ल

वी दूध रो दूध ने पाणी सो पाणी करे हे

वणाती(उनसे) अणी वाते,हगरा(सभी)मनक(मनुष्य)डरे हे

गरीब लोगाँरी हालत तो घणी खराब हे

वी रोज कूडो(कुँआ)खोदे,रोज पाणी पिये हे

गूँगा,बेरा ने चालवाती(चलने से)मोताज झाडका(पेड़)

पाणी वना(बिना)हूकी ने (सूख कर)वणा रा पाना झड़े हे

दन दाड़की करे,वी बिचारा एक टेम खाय

मजूर वाण्या(बनिये)री(की)उधार लई ने पेट भरे हे

चौमासा में वावणीं, री वाट जोवे किरसाण

पाणी जमी ने पड़े तो वावणी करे हे

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