Thursday, 13 March 2008
संजय पटेल की मालवी कविता
जमानो नीं बदलेगा
लुगई रोज रिसावे
लाड़ी पाणी नीं बचावे
तेंदूलकर रन नीं बनावे
छोरो घरे नीं आवे
छोरी सासरे नीं जावे
माड़साब सबक नीं करावे
टाबरा भणवा नीं जावे
नेता झूठी कसम खावे
अखबार सॉंच छुपावे
हेडसाब थाणा में खावे
भई-भई रोज कुटावे
बेसुरो नाम कमावे
मालवी बोलता नीं आवे
जमाना के बेसरमी भावे
दा साब !
छाना-माना बेठा रो
बको मती।
तमारा दन ग्या।
किच-किच करोगा
तो छोरा-छोरी इज्जत का
कांकरा करेगा
मुंडो खोलो मती
दाना-बूढ़ा हो
बेठा-बेठा देखता रो
जमानो नीं बदलेगा
तम बदली सको
तो बदलो।
थोड़ो लिख्यो हे
पूरो जाणजो।
(रेखाचित्र:दिलीप चिंचालकर)
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5 comments:
मजो अईग्यो!
रंग राख्यो छे संजय भाई --
मज़ा पडी गयी :-)
Ghadi hao baat ki dada tamne..jamana ke ni badali sakan logna tou huee giya "garan geliya" ab kain karan ?
Kai baat he patel sab mast mast kavita likhirya ho...
Wow amajin masta masta
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